दीदी मनमोहिनी जी की जीवन कहानी
दीदी (बड़ी बहन) मनमोहिनी जी रूद्र ज्ञान यज्ञ के शुरुआती वर्षों में 1936-37 में ही यज्ञ (ब्रह्म कुमारियों) में शामिल हो गईं। कैसे? यह भी आप यहाँ जानेंगे। उनका लौकिक नाम ‘गोपी’ था, जिनका 1915 में सिंध, हैदराबाद में माता रुक्मणी के घर जनम हुआ। दादा लेखराज (प्रजापिता ब्रह्मा बाबा) के साथ उनका पारिवारिक संबंध रहा था।
दीदी का जन्म एक बहुत साहूकार (धनवान) घर में हुआ और उनका विवाह भी ऐसे ही साहूकार घर में किया गया। तब भी उनका दादा लेखराज से पारिवारिक सम्बन्ध रहा। ऐसे ही एक दिन दीदी की माँ दादा के शरू किये गए सत्संग से जुडी, तो दीदी को भी बुलावा आया। वैसे तो दीदी पेहले भी बहुत बरी दादा लेखराज के घर गयी थी, लेकिन ऐसे सतसंग के लिए नहीं। आज दीदी को पहली बार दादा को देख एक अजीब सी रूहानी आकर्षण हुई। उनको दादा में श्री कृष्ण का साक्षत्कार हुआ। जैसे दीदी ने बताया – ”में जैसे पल भर के लिए स्वर्ग में पहुँच गयी. मुझे कृष्ण बहुत आकर्षित कर रहा था। उस दिन बाबा ने सत्संग में भगवद की गोपियों की बात की – कैसे वो एक के प्यार में मगन थी, तो मुझे अंदर से लगा की यह गोपी और कोई नहीं लेकिन में ही हूँ।”

In spite of being in a rich family, I was very unhappy in my worldly life. This is why I would spend more time attending various satsangs here and there. There were all types of comfort in my home and we were constantly engaged in charity and making donations. I loved the Gita and the Bhagavat very much. I did not know what would happen through reading them but I just loved the story of gopis in the Bhagavat. I was habitual of going through that story daily. I even visualized myself as a gopi internally. Even my loukik name was Gopi! As I was reading about Krishna’s divine games with his gopis I would shed tears of love. I was so fond of those gopis! I wondered as to how the gopis succeeded in meeting Krishna. So this is how my path of devotion continued.
Introduction and Life Story
२८ जुलाई विशेष
आज दिदि मनमोहिनी जी की पुण्यतिथि है …दिदि जी विशेष आत्मा थीं .. गुणमूर्त बन सभी के गुण देखती थीं। उनका कहना था कि ….विशेष आत्मा बन, विशेषता को ही देखो और विशेषता का ही वर्णन करो।आज हम यही अभ्यास करेंगे।
मैं विशेष आत्मा हूं — शिव परमात्मा की प्यारी संतान हूं — सदा मोती चुनने वाली होली हंस हूं —मैं सदा सबकी विशेषताएँ ही देखती हूं और उनका ही वर्णन करती हूं– इससे मेरी विशेषता भी बढ़ जाती है और उस आत्मा को भी प्रेरणा मिलती है।
दिदि जी कहती थीं कि अगर हम किसी की कमजोरी मन में रखेंगे तो वो हमारी कमजोरी बन जायेगी… तो हम किसी की कमजोरी देखे ही क्यों?… मैं आत्मा तो सर्व की विशेषता देखने वाली विशेष आत्मा हूँ… जब मैं आत्मा किसी की विशेषता देखती हूँ… तो वो मेरी भी विशेषता बन जाती हैं… और उस आत्मा को भी मुझ से पॉजिटिव एनर्जी मिलती हैं… और उनकी विशेषता और ही वृद्घि को पाती हैं।
दिदि जी का कहना था कि सदा अपने श्रेष्ठ स्वमान मे रहो …… मैं गुणमूर्त आत्मा हूँ… सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा के गुण और विशेषता ही देखो… उनकी विशेषताओं का ही वर्णन करो …… मैं बाप समान आत्मा… मास्टर प्रेम का सागर हूँ… हर आत्मा प्रति कल्याण की भावना लिए हुये… हर आत्मा की विशेषताओं को उजागर कर… उनका उमंग-उत्साह बढ़ाती हूँ ।
दिदि जी कहती थीं — सदा सोचो कि मैं सर्व की स्नेही आत्मा बन गई हूँ… समाने की शक्ति द्वारा… सर्व की कमी कमजोरियों का विनाश कर… उनके गुणों और विशेषताओं को देख उन्हें आगे बढ़ाने की निमित्त आत्मा हूँ… सभी के पुरुषार्थ को तीव्र करने वाली बाप समान आत्मा हूँ ।
दिदि जी की मान्यता थी कि….यदि विशेष आत्मा बनना है तो सबकी विशेषता देखो। दिदि जी की मान्यताओं का अनुसरण करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना है।
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