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Introduce Yourself (Example Post)

This is an example post, originally published as part of Blogging University. Enroll in one of our ten programs, and start your blog right.

You’re going to publish a post today. Don’t worry about how your blog looks. Don’t worry if you haven’t given it a name yet, or you’re feeling overwhelmed. Just click the “New Post” button, and tell us why you’re here.

Why do this?

  • Because it gives new readers context. What are you about? Why should they read your blog?
  • Because it will help you focus you own ideas about your blog and what you’d like to do with it.

The post can be short or long, a personal intro to your life or a bloggy mission statement, a manifesto for the future or a simple outline of your the types of things you hope to publish.

To help you get started, here are a few questions:

  • Why are you blogging publicly, rather than keeping a personal journal?
  • What topics do you think you’ll write about?
  • Who would you love to connect with via your blog?
  • If you blog successfully throughout the next year, what would you hope to have accomplished?

You’re not locked into any of this; one of the wonderful things about blogs is how they constantly evolve as we learn, grow, and interact with one another — but it’s good to know where and why you started, and articulating your goals may just give you a few other post ideas.

Can’t think how to get started? Just write the first thing that pops into your head. Anne Lamott, author of a book on writing we love, says that you need to give yourself permission to write a “crappy first draft”. Anne makes a great point — just start writing, and worry about editing it later.

When you’re ready to publish, give your post three to five tags that describe your blog’s focus — writing, photography, fiction, parenting, food, cars, movies, sports, whatever. These tags will help others who care about your topics find you in the Reader. Make sure one of the tags is “zerotohero,” so other new bloggers can find you, too.

ज्ञान योग पर प्रश्न उत्तर (Question Answers on Gyan and Yog)

Murli related questions and answers – PART 6. इस PART (भाग) में ३ प्रश्न लिए गए है.

References:

Question Answers section

General Articles – Hindi & English

✿✿ प्रश्न १ (Question 1) ✿✿

1.आत्मा अभिमानी स्थिति
2.Dehi abhimani sthiti
3.Videhi avastha
4.Ashariri sthiti kaisa bana
— चारो ही स्थित को अलग अलग स्पस्ट भी कीजिये भाई जी —

Raja Yoga 3 stages - Baba se yog

उत्तर:
बहन, सर्वप्रथम हम आप को इन चारों स्थितियों के बारे में संक्षिप्त में बता देते है, फिर आगे इन स्थितियों को प्राप्त करने की सहज विधि भी बतलाते है।

*** देही अभिमानी स्थिति ***

देही अर्थात आत्मा। तो आत्मा के मौलिक गुणों और शक्तियों के स्मृति स्वरूप में रहकर कर्म करना ही देही-अभिमानी स्थिति है।

*** आत्मभिमानी स्थिति ***

साकार शरीर मे रह कर आत्मा के शुद्ध नैसर्गिक गुणों और शक्तियों की नेचुरल स्मृति में रहकर कर्म करने की स्थिति को आत्मभिमानी स्थिति कहते है। इस स्थिति में हमे स्वयं को आत्मा के गुणों और शक्तियों की स्मृति नही दिलानी पड़ती, बल्कि ये नेचुरल होता है।
इस आत्मभिमानी स्थिति में सतयुग और त्रेता की समस्त आत्मये रहती है।

*** अशरीरी स्थिति ***

अशरीरी अर्थात शरीर मे रह कर किया जाने वाला हर वो कर्म जिसमे सूक्ष्म या स्थूल किसी भी रूप में कोई फल की कामना और चाहना ना हो। अशरीरी स्थिति को ही फ़रिश्ता स्थिति कहते है। फ़रिश्ता अर्थात धरनी अर्थात मिट्टी अर्थात देह और देह के संबंध, पदार्थ, वस्तु, व्यक्ति और वैभवों से कोई भी रिश्ता नही। अर्थात अनासक्त और उपराम वृत्ति में रह कर किया गया कर्म अशरीरी स्थिति का द्योतक है।

*** विदेही स्थिति ***

ये स्थिति राजयोगा की सबसे अंतिम और उत्कृष्ट स्थिति है। इसे हम कर्मातीत अवस्था या स्थिति के रूप में भी जानते है। ये स्थिति तो हमे पुरुषार्थ की पराकाष्ठा में अंत समय में ही मिलनी है। बहन, वैसे तो मुरलियों में बाबा ने समय प्रति समय अनेको पॉइंट हर स्थिति के अभ्यास और अनुभव के संबंध में बताए है। पर मैं आत्मा आप को इन स्थितियों का अनुभव करने के लिए बहुत सहज अभ्यास बताते है।

मीठे ब्रह्मा बाबा ने अव्यक्त होने से पहले सम्पूर्ण और संपन्न अव्यक्त फ़रिश्ता और कर्मातीत बनने की सहज विधि 3 मूल मंत्र के महावाक्यों द्वारा बता दिया।

१- निराकारी
२- निर्विकारी
३- निरहंकारी

ध्यान दे – इन तीन महावाक्यों का केवल अर्थ ही अत्यंत सारगर्भित नही है, बल्कि जिस क्रम में बाबा ने इसे उच्चारा, वो भी अत्यंत सारगर्भित है। ऐसा नही है कि पहले हमें निरहंकारी बनना है, फिर उसके बाद निराकारी और निर्विकारी बन जाएंगे, कदापि नही।

सबसे पहले हमें स्वयं को निराकारी अर्थात आत्मीक स्टेज पर रह कर हर कर्म करना है। जब ये स्टेज पक्की हो जाएगी तो देह देखने की जो सबसे बड़ी विकार है, जिससे ही अन्य सभी विकारो की उत्पत्ति होती है, उससे सहज ही छुटकारा मिल जाएगा । आगे, जब देह को ही नही देखेंगे तो किसी भी प्रकार का अहंकार आने का कोई सवाल ही नही है।

जब ये तीनो महावाक्य ब्राह्मण जीवन मे 75% के ऊपर धारण कर लेंगे तो सहज मायाजीत सो कर्मातीत अवस्था को नम्बरवार प्राप्त कर लेंगे।

इसलिए अलग अलग कई बिंदुओं को स्मृति में ना रख इन 3 मुख्य बिंदुओं पर फोकस करे और इनमें से भी मुख्य आत्म-स्मृति में रहने का अभ्यास बढ़ाते जाए। आप जैसे जैसे इस आत्म-स्मृति में आगे बढ़ते जाएंगे, वैसे वैसे ही देही-अभिमानी से लगायत अशरीरी स्थिति और अंतोगत्वा कर्मातीत अर्थात विदेही अवस्था को प्राप्त कर लेंगे।

— आत्मीक स्थिति को बढ़ाने के लिए tips —

दृष्टि और वृति पर अटेन्शन देना है। दृष्टि हमारी भाई -भाई या भाई-बहन की हो।

वृत्ति में सर्व प्रति कल्याण और रहम-क्षमा की भावना, अपकारी पर भी उपकार की भावना, सतत ज्ञान का मनन – चिंतन और मन को भिन्न-भिन्न ड्रिल में बिजी रख कर आत्मीक स्थिति को श्रेष्ठ बनाया जा सकता है।

यह योग की कमेंटरी जरूर सुने -> RajYog guided commentaries

ओम शांति

✿✿✿ प्रश्न 2 ✿✿✿

Non gyani आत्माओं से interaction के समय, ये बिल्कुल भूल जाता है कि सभी आत्माएं है, बाह्यमुखता की अधिकता हो जाती है, इसके लिए कुछ युक्ति बताएं।
– ग्रुप का हिस्सा होते हुए उपराम और न्यारे कैसे रहे, और वो भी अगर वो non bks हैं?

उत्तर ->
ओम् शांति।
जब स्वयं को सदा सेवा क्षेत्र पर होने अर्थात रूहानी मैसेंजर और soldier होने की स्मृति में रहने का अभ्यास बढ़ाते जाएंगे तो सहज ही अज्ञानी आत्माओ से interaction के समय या अनेको हलचल में भी अपनी अवस्था को अचल, अडोल और एकरस बना सकेंगे।

शादी -विवाह या घर मे आयोजित किसी उत्सव में हमे अनेको अज्ञानी आत्माओ के संबंध संपर्क में तो आना ही पड़ता है। ऐसे समय पर हम सबसे कट कर नही रह सकते क्योंकि इससे फिर dis-service हो जाती है। इसलिए ग्रुप का हिस्सा होते भी उपराम और न्यारे बनने के लिए अलौकिक व्यवहार को धारण करे। साक्षीदृष्टा हो सबके पार्ट को देखते अपने पार्ट की स्मृति में रहे। कम बोलना, धीरे बोलना और मीठा बोलने का अभ्यास करें।

Dhristi - yog


वास्तव में द्वापर से आत्मा को अनेक बातो का रस लेने की बुरी आदत बहुत गहरे समा गई है इसलिए अब सर्व रसों को त्याग एक रस में परमात्म रस में डूबने के पुरुषार्थ की मेहनत तो स्वयं ही करनी होगी ना। मन बार बार अनेको रस की तरफ भागेगा पर आप को अपने मन-बुद्धि को ज्ञान के मनन-चिंतन, आत्मीक दृष्टि-वृत्ति के अभ्यास में रत रखना होगा। ध्यान रखे – वास्तव में ऐसे लौकिक संगठन भी हमारे स्व-स्थिति को परखने के पेपर ही है। तो चेक करें कि अनेको हलचल में एकान्तवासी, एकाग्रचित्त और एकरस अवस्था मे रहने की आप की स्व-स्थिति कितनी शक्तिशाली है।
ओम् शांति

✦✦✦ प्रश्न 3 ✦✦✦

Kal ki baba ki murli me ek point hai ki es purrane sharir ko sambhalna bhi hai aur bhulana bhi hai. Yeh kaise ho? Qyounki ki deh yaad aate hi deh ke naate rishte Maya sab attached ho jaati hai. Es purusharth ki kaise sahaj kare?

* उत्तर ->
ओम् शांति।
आप का प्रश्न – एक तरफ देह को संभालना भी है तो दूसरी तरफ भुलाना भी है । ये कैसे संभव होगा ?….. ये संभव है भाई जी। बाबा ने इस संबंध में अनेको विधियां भी बताई हुई है।

देह को संभालने और भुलाने का पुरुषार्थ एक साथ हो और सहज भी हो इसके लिए निम्न स्मृतियां रखे –
स्वयं को इस देह और धरा पर मेहमान समझे। इस स्मृति से महान आत्मा बन जाएंगे। इसके लिए मम्मा के स्लोगन – *हर घड़ी अंतिम घड़ी* और बड़ी दीदी के स्लोगन – *अब घर जाना है* को स्मृति में रखे।

विश्व नाटक के क्लाइमेक्स वा कल्प का अंत समय होने की स्मृति द्वारा नष्टोमोहा और साक्षीदृष्टा भाव का पार्ट पक्का रखे।

इस शरीर को शिवबाबा की अमानत समझ कर इसकी संभाल करनी है क्योंकि इस अंतिम शरीर द्वारा 21 जन्मो की प्रालब्ध बनानी है। पर ध्यान रखे कि शरीर की संभाल करने के बहुत ज्यादा चक्कर मे आत्मा में ताकत भरने का समय कही समाप्त ना हो जाये।

देह में रहते देह के स्थान को सेवा स्थान और देह के संबधी आदि को सेवा के निमित्त समझना है। इस स्मृति से सहज ही इस सबसे अनासक्त वृत्ति से संबंध संपर्क में आएंगे।

नए और पुराने शरीर के contrast का विचार सागर मंथन करने से – चिंतन करे कि ये पुराना पतित जडजड़ीभूत शरीर है, पुरानी जुत्ती है। अब हमें जल्द ही नई सतयुग में नया शरीर, नए संबंध, अविनाशी सुख-शांति और समृद्धि युक्त जीवन्मुक्त जीवन मिलने वाला है। इस चिंतन द्वारा इस पुरानी दुनिया और देह से आसक्ति नष्ट हो नई सतयुगी दुनिया और देवताई पवित्र शरीर की स्मृति रहने से दिव्य गुणों की धारणा सहज होती जाएगी। ट्रस्टी और निमित्तपन के भाव से – सबकुछ शिवबाबा का है। हमे अमानत में खयानत नही करना है।

साकारी सो आकारी सो निराकारी के अभ्यास द्वारा – कर्म करते समय स्वयं को देह में अवतरित हो कर्म करे, बाद में स्वयं को आकारी फ़रिश्ता सो निराकारी परमधाम निवासी होने की स्मृति स्वरूप का अभ्यास बढ़ाये।
….. इसके अलावा कई अन्य सहज विधियां भी बाबा मुरली में बताते रहते है, उस पर अमल कर के देह को संभालने और भूलने का पुरुषार्थ सहज रूप से एक साथ कर सकते है।
ओम शांति

✦✦✦ प्रश्न 4 ✦✦✦

सुख और खुशी में क्या अंतर है?*

* उत्तर:
ओम् शांति बहन।
ज्ञान मार्ग में हम सभी जानते है कि आत्मा की मुख्य सात गुण – पवित्रता, ज्ञान, सुख, शांति, प्रेम, आनंद और शक्ति है, इसलिए ही आत्मा को सतोगुणी कहते है।

सुख तो आत्मा की शक्ति ही है पर जब आत्मा को किसी वस्तु, वैभव या व्यक्ति से सुख या दुख की अनुभूती वा प्राप्ति होती है तो उसको व्यक्त करने का साधन स्थूल या बाह्य कर्मेन्द्रियां ही बनती है, जिससे किसी को उस् मनुष्यात्मा के खुश या दुखी होने का संज्ञान होता है।

…इसलिये संक्षेप में कह सकते है कि सुख अंतर्मन वा आत्मा का प्रसंग है और खुशी उसका बाह्य प्रत्यक्ष स्वरूप।
ओम् शांति

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Advance Murlis (August 2019)

ईश्वरीय भेट स्वरुप आज आपको शिव बाबा की आने वाली ज्ञान मुरलिया in advance भेज रहे है। इसका लाभ वो उठा सकते है जो travel करते होंगे व अन्य कर्मो में busy होने कारन आने वाली मुरली अभी ही पढ़ना चाहे व notes लेना चाहे। समझा?

Shiv baba Advance murli

( As a form of Godly gift, today we are sending you Shiv Baba’s Gyan murlis in ”advance”. Those who are travelling or those who are busy in loukik tasks can take benefit from this. Download these murli PDFs and keep in record. Study whenever you get time. Understood? )

निचे अगस्त मॉस की पहले 18 दिनों की मुरलिया 3 भागो में रखी है।

( Below we have kept all Hindi Murlis in PDF for the first 18 days of August. You can download, save on phone or print. Do SHARE this blog post to others who can receive this gift )

30 July to 4 August Murlis

5 August to 11 August Murlis

12 August to 18 August Murlis

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Read: What is Murli & Shrimat of Baba? (English)

___________________________

✿ MORE Godly Gifts ✿

Gyan Amrit magazine of July 2019 (Hindi)

Purity magazine of July 2019 (English)

ज्ञान योग सम्बंधित प्रेरणा दायी कविताए पढ़े -> हिन्दी कविताएँ

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Murli related Question Answers (PART 5)

Murli related questions and answers – PART 5. इस PART (भाग) में ३ प्रश्न लिए गए है.

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प्रश्न १ (Question 1)

—————————

Via WhatsApp message:

”Kuchh dino se yog ni ho raha
Yog nahi lag raha. Samajh nahi aa raha. Kahin bhi man ni lg raha… Kya karu?”


* उत्तर (+ Guidance):
ओम शांति।
हमारे पूर्व संचित विकर्म ही हमारी आत्मा को बोझिल करते है, जिससे सहज योगयुक्त अवस्था का निर्माण नही हो पाता। और दूसरा, हमारा अनियमित ब्राह्मण जीवन की मर्यादाएं जैसे अमृतवेला का मिस करना, मुरली मिस करना, अन्न दोष और संग दोष के कारण भी मेजोरिटी आत्माओ की स्थिति हलचल में रहती है।
मुख्य रूप से अन्न दोष और संग दोष ही सबसे मुख्य है, जिस कारण अमृतवेले से लेकर कोई भी अन्य धारणा नही हो पाती।

कहते है, जैसा होगा अन्न वैसा होगा मन ; जैसे होगी दृष्टि वैसी होगी वृति; जैसा होगा पानी वैसी होगी वाणी।
अन्न से मन का डायरेक्ट कनेक्शन है। इसलिए योगयुक्त विधि से बनाये हुए भोजन को योगयुक्त अवस्था मे खाने से मन की अनेको बीमारी समाप्त हो मन शक्तिशाली होता है। और जब मन शक्तिशाली होगा तो उसके संकल्प भी पावरफुल और पॉजिटिव होंगे, जिससे योगयुक्त अवस्था का निर्माण करना सहज हो जाएगा।

.. इसलिए आप मुख्य अन्न और संग की संभाल करने पर विशेष ध्यान केंद्रित करें। सात्विक अन्न के संबंध में तो आप को ज्ञात होगा ही। और संग दोष में नेगेटिव और व्यर्थ चिंतन, परचिन्तन, परदर्शन और प्रदर्शन करने वाली आत्माओ से स्वयं की संभाल करना है। इसके लिए खाली समय मे उस दिन के मुरली के सार, वरदान, स्लोगन का चिंतन करना या विशेष आप के लिए बाबा ने जो बात कही है, उस पर विचार मनन करे।
अमृतवेले में अगर योग की स्थिति नही बन पा रही हो तो बाबा का कोई सुमधुर गीत ही लगा कर सुने या बाबा से मीठी रूह-रिहान करे या ब्राह्मण जन्म लेते ही मीठे बाबा ने आप को जो भी प्रत्यक्ष यादगार अनुभव कराए है, उनकी स्मृति करे अर्थात अपने ज्ञान के बचपन के दिन को याद करे। इससे भी आप का बाबा से कनेक्शन आसानी से जुड़ सकेगा।
. ओम शांति .

________________________

प्रश्न २ (Question 2)

——————————

Om shanti. Chandra Grahan aur surya Grahan kya ye Grahan brahman atmayo ko bhi prabhavit krte h. Please btaye.

* उत्तर :
हांजी बहन। मुख्य रूप से ये सूर्यग्रहण और चंद्र ग्रहण , जिसे विशेष भारत वर्ष में बहुत महत्व देते है, उसका प्रत्यक्ष रूप से कनेक्शन हम ब्रह्मामुखवंशावली ब्राह्मणों से ही है ।
हम ब्राह्मण सो देवी-देवता धर्म की आत्माये ही समस्त मनुष्य जाति की आत्माओ के पूर्वज है। हम सतयुगी सूर्यवंशी और त्रेतायुगी चंद्रवंशी घरानों की आत्माये जब द्वापर में वानमार्गी हो जाते है अर्थात हमारे कुल पर विकार रूपी कलंक का ग्रहण लग जाता है तो परोक्ष-अपरोक्ष रूप से हमारी वंश बेल भी इस विकार रूपी ग्रहण से अछूती नही रह पाती।

इसलिए ज्ञान की गुह्यता के आधार से ऐसा समझ सकते है कि ये सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण हम सूर्यवंशी और चंद्रवंशी घराने की आत्माओ को कलयुग अंत तक ग्रसित करती है । परंतु संगम पर जब ज्ञानसूर्य शिवबाबा से हमारा यथार्थ और डायरेक्ट परिचय और कनेक्शन हो जाता है तो हम महावीर हनुमान बन जाते है और फिर राहु केतु जैसे विकार रूपी ग्रहण हमारा कुछ नही बिगाड़ सकते। … परंतु ये ध्यान रखे कि इस संगमयुगीन ब्राह्मण जीवन मे भी जैसे ही हमे अपने स्वरूप की विस्मृति होगी, वैसे ही ये राहु केतु वा माया रावण रूपी विकार वा ग्रहण हम ब्राह्मणों को पुनः लग जायेगी। इसलिए ही बाबा हमे सदा देह अभिमान से दूर आत्मिक स्थिति में बापदादा से कंबाइंड होकर रहने का डायरेक्शन देते है।
ओम शांति

_________________________

प्रश्न ३ (Question 3)

——————————-

भटकती आत्मा होती है वो क्यों दूसरे शरीर मे प्रवेश करती है ? क्या हम पहचान सकते है ? उसका इलाज क्या है उस शरीर से बाहर निकालने के लिए ?

* उत्तर:

किसी भटकती आत्मा के किसी भी दूसरे मनुष्य के शरीर मे प्रवेश का कारण मेजोरिटी उस मनुष्यात्मा से उसका पिछला कार्मिक अकाऊंट है। और दूसरा किसी प्रकार की स्थूल भासना लेने के लिए भी कोई भटकटी रूह अपने हिसाब किताब वाली मनुष्यात्मा के शरीर का आधार लेती है। जब कोई भटकती आत्मा किसी के शरीर मे प्रवेश करती है, तो उस मनुष्यात्मा की एक्शन एक्टिविटी, बोल, चाल में एकाएक बहुत परिवर्तन आ जाता है, जिससे सहज पता लगाया जा सकता है कि ये मनुष्यात्मा किसी रूह की परकाया प्रवेश से ग्रस्त है।

भक्तिमार्ग में तो ओझाई, झाड़-फूंक द्वारा ऐसी आत्मा को बाहर निकालते है। लेकिन हम ज्ञान मार्ग की आत्माये शायद ऐसा नही कर सकती। पर पावरफुल योग स्थिति द्वारा ऐसी मनुष्यात्मा से बात करना और उसके प्रवेश का कारण जानकर उसका निदान करना या उस मनुष्यात्मा प्रति संगठित योग विधि द्वारा पवित्रता की ऑरेंज और शक्ति की लाल किरणों से उसको पावरफुल सकाश देने की विधि द्वारा उसका निदान किया जा सकता है। क्योंकि इस विधि द्वारा परकाया प्रवेश की हुई आत्मा स्वयं को मुक्ति का अनुभव करती है, लिहाज़ा वो अत्यंत सरलता से बिना उस व्यक्ति को कोई नुकसान पहुचाये, सदा के लिए छोड़ देती है।
ओम शांति…

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Murli related Question Answers (PART 4)

Murli related questions and answers – PART 4. References:

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Q 1: Om shanti didi
Didi 4.12 .2017 ki murli me baba ne kha jo pehle aatma aati hai vo dharam sthaapan nahi karti .Jo aatma parvesh karti hai vo dharam sthaapan karti hai.To kya jesus christ or gurunaanak dev ji ne parvesh kiya tha? Unki apni aatma ne janam nahi lia tha…

God is one in all religions - Murli


Answer:
बाबा ने मुरलियो में बताया हुआ है कि परमधाम से जो कोई भी आत्मा पहले पहल आती है वो सतोप्रधान होती है अर्थात उसे किसी भी प्रकार का दुख नही होता। आप स्वयं विचार करे कि परमधाम से आई आत्मा ने जब कोई विकर्म ही नही किया फिर उसे किस बात वा कर्म की भोगना भोगनी पड़े। भोगना तो तब भोगनी पड़े जब कोई पूर्व में कोई विकर्म हुआ हो ना।

आप देखे, जिस प्रकार आदि सनातन धर्म को स्थापना शिवबाबा ने ब्रह्मा तन में परकाया प्रवेश कर किया और जो भी दुख-तखलीफ़ हुआ वो ब्रह्मा तन को हुआ। ठीक इसी रीति अन्य सभी धर्मों को स्थापना भी pure soul ने किया। अर्थात कहने का तात्पर्य है कि ईशामसीह और गुरुनानक ने अपने-अपने धर्म की स्थापना नही की बल्कि उनके तन का आधार लेकर परमधाम से आई पवित्र आत्मा ने किया और सारा दुख-पीड़ा ईशामसीह और गुरुनानक की आत्मा को सहन करना पड़ा।

इसलिए शिवबाबा ने एकदम सत्य महावाक्य उच्चारा कि पहले वाली आत्मा अर्थात बुद्ध, ईशामसीह और गुरुनानक के तन की असल आत्मा धर्म का स्थपना नही करती बल्कि उनकी शरीर मे परमधाम से आई हुई सतोप्रधान आत्मा ही प्रवेश कर धर्म की स्थापना करती है और बाद में वही आत्मा फिर उस धर्म की पालना के निमित्त बनती है, ठीक उसी तरह से जिस प्रकार ब्रह्मा बाबा ही श्रीकृष्ण वा श्रीनारायण के रूप में आदि सनातन देवी-देवता धर्म की पालना के निमित्त बनते है।
ओम् शांति
——————————
* प्रश्न 2 –

————————-

बापदादा कहते हैं कि विनाशकाल में आठ प्रकार के पेपर आयेंगे वह कौन-कौनसे पेपर हैं तथा उन्हें पास करने के लिए ह्में क्या पुरुषार्थ करना होगा ??

Answer:
पेपर अर्थात परीक्ष। परीक्षा दो शब्दों के समुच्चय से बना है। परीक्षा = पर + इच्छा। अर्थात जो कुछ हमारी इच्छा के विपरीत हो उसे ही परीक्षा कहते है। विनाश काल या महापरिवर्तन के समय हम ब्राह्मणों के सन्मुख आने वाले मुख्य 8 प्रकार के पेपर निम्न है – (Refer: World Transformation)

१- माया अर्थात 5 विकारो द्वारा पेपर

पुराने स्वभाव-संस्कार इमर्ज होने के रूप से सतयुग और त्रेता में आत्माभिमानी स्थिति में होने से वहाँ माया का कोई अंश या वंश नही होता। लेकिन द्वापर में आते ही देह प्रति दृष्टि हो जाने से शनैःशनैः माया वा विकारो की प्रवेशता होने लगती है। जो कलयुग अंत तक अत्यंत विकृत रूप ले लेती है। अंत समय हम ब्राह्मणों में भी मर्ज हो चुके कई पुराने स्वभाव-संस्कार रूपी विकार अचानक से इमर्ज हो जाएंगे। इस माया के पेपर में विजय पाने के लिए – देही-अभिमानी स्थिति में रहने का अभ्यास बढ़ाये। आदि-अनादि स्वरूप की स्मृति में रहने का अभ्यास बढ़ाये।

२- प्रकृति द्वारा पेपर

प्रकृति द्वारा अन्त समय बाढ़, भूकंप, सुनामी, अकाल इत्यादि द्वारा पेपर आएंगे। इसे पास करने के लिए – मनसा सकाश द्वारा प्रकृती के तत्वो को सकाश देना है। प्रकृति के तत्वों यथा जल, अन्न इत्यादि का wastage नही करना है।
ध्यान रखे – प्रकृति के जिन जिन तत्वों को हम ब्राह्मणों ने मनसा सकाश द्वारा भरपूर किया होगा, वो तत्व अंत समय हमारे लिए सहयोगी और सुरक्षा का कारण बनेंगे।

३- लौकिक संबंध या अज्ञानी आत्माओ के रूप में पेपर

अंत समय हमारे लौकिक संबंधी कर्मभोग के रूप में अपना हिसाब-किताब चुक्तू करेंगे। उनकी चिल्लाहट, करुण क्रंदन हमे उनकी तरफ आकर्षित करेगा। इसलिए ऐसे पेपर को पास करने के लिए हमे निम्न बातो का ध्यान रखना है। स्मृति रखे कि ड्रामा में सबका अपना अपना पार्ट और अपना अपना रहा हुआ हिसाब किताब है और इस अंत समय सभी का अपना हिसाब-किताब चुक्तू हो रहा है।

जैसे अंत समय बाप साक्षी हो जाएगा, वैसे ही खुद को भी साक्षीदृष्टा बना ले। हद की दृष्टि वृत्ति से उपराम बेहद की दृष्टि और आत्मीक वृति से अपने संबंधियो को मनसा सकाश द्वारा बल प्रदान करे। एक बाप से सर्व संबंध जोड़ने का अभ्यास अभी से बढ़ाते जाए। इसके लिए अपने जीवन की हर एक छोटी बड़ी बात को बाबा से शेयर करे। जब सर्व संबंध एक बाप से रहेंगे तब हद के संबंध अपनी तरफ आकर्षित नही कर पाएंगे।

४- अलौकिक परिवार द्वारा पेपर

ब्राह्मण परिवार द्वारा भी एक दूसरे की उन्नति को देख ईर्ष्या वश अनेक ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न किये जायेंगे, जिनसे संभव है कि हम बापदादा का हाथ साथ छोड़ दे। तो इन सब पेपर को पास करने के लिए स्मृति रखे कि – कई जन्म हमारा कनेक्शन इस ब्राह्मण परिवार से रहा है तो जरूर इनसे हमारा कार्मिक अकॉउंट भी बना ही होगा, जो अब इनके द्वारा लायी जा रही पेपर्स के रूप में चुक्तू हो रहा है। इसलिए बातो को ना देख, एक बाप को देखे और फॉलो करें।

सबके प्रति शुभ भावना और शुभ कामना के संकल्प द्वारा अपना हिसाब किताब चुक्तू करना है। बाबा के हाथ अर्थात मुरली में बाबा के डाइरेक्शन को फॉलो करें और साथ अर्थात बापदादा के साथ कंबाइंड रहे।

५- राज्य सत्ता अर्थात सरकार द्वारा पेपर

अंत समय राज्य सत्ता अर्थात सरकार द्वारा भी अनेको करो को अधिरोपित कर, भूमि संपत्ति का अधिग्रहण, बैंकों में जमा धन का सीज किये जाने आदी अनेक भिन्न भिन्न रूपो से पेपर आएंगे। इसके लिए स्मृति रहै कि –
बाबा ने पहले ही बता दिया था- किन की दबी रहेगी धूल में…….किनकी राजा खाय, सफल हुए उनके जो ईश्वर अर्थ लगाए। गीता के महावाक्य – क्या खो गया जो तुम लेकर आये थे ! ये धन संपदा सब विनाशी वस्तुये है और हम तो अब ऐसी दुनिया में जा रहे है जहां अप्राप्त कोई वस्तु नही। … ऐसे ऐसे श्रेष्ठ चिंतन कर के अपने को श्रेष्ठ स्वमानो में स्थित करे।

६- धर्म सत्ता अर्थात अन्य धर्मो की आत्माओ द्वारा पेपर

अंत समय अन्य धर्मो की आत्माओ द्वारा दंगा, हिंसक कृत्य आदि के रूप द्वारा भिन्न भिन्न पेपर आएंगे। इन पेपर्स को पास करने की बिधि है – एक बाप से कंबाइंड योग युक्त स्थिति:- जब ऐसी स्थिति रहेगी तब हिंसा पर उतारू अन्य धर्म की आत्माओ को हमसे दिव्य प्रकाश या उनके इष्ट का साक्षत्कार होगा और वे डर कर या हमे नमस्कार कर के हमसे दूर हो जाएंगी।
शिव बाबा का संदेश जितनी भी ज्यादा आत्माओ को देने के निमित हम बनेंगे, अन्त समय शिवबाबा के सर्व धर्म की आत्माओ के स्वीकार्य पिता हो जाने के कारण, जब वे आत्माये हमे अर्थात शिववंशी सो ब्रह्मवंशी आत्माओ को सन्मुख देखेंगी तो हम पर वार नही करेंगे।

७- भटकती आत्माओ से पेपर

अंत समय इतना ज्यादा मौते होंगी जो आत्माओ को शरीर नही मिलेगा। ऐसे समय हिसाब किताब अनुसार एक एक मनुष्यात्माओं में एक साथ कई आत्माये प्रवेश कर जाएंगी। वो स्थिति अत्यंत भयावह होगी। ऐसी स्थिति को पार करने के लिए पवित्रता के बल को अत्यंत पावरफुल बनाये। जिन आत्माओ में पवित्रता और योग का बल होगा, उनके एक दृष्टि से ही भटकती आत्माओ का उद्धार हो जाएगा। अपने पूर्वजपन की आधारमूर्त और वर्तमान संगमयुगी कर्तव्य उद्धारमूर्त के स्मृति स्वरूप बन कर रहना होगा।

८- शारीरिक कर्मभोग या कष्टप्रद बीमारी आदि के रूप में

अंत समय हम ब्राह्मणों को भी कष्टप्रद शारीरिक रोगों के भोगनाओ के रूप में भी पेपर्स आने है। इस् पेपर को पास करने के लिए – अशरीरीपन का अभ्यास बढ़ाना है। जितना जितना इस शरीर रूपी वस्त्र से detach रहेंगे , उतना ही शारीरिक भोगनाओ की महसूसता से उपराम होंगे।
ओम शांति

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21 साल से ज्ञान में हो (Q and A 3)

Q : भाईजी आप २१ साल से ऊपर इस ज्ञान में हैं, कितने ही इस ज्ञान में आते हैं और फिर चले जाते हैं, तीन बार विनाश की तारीख फेल हो गयी, इस वजह से कितनों ने इस संस्था को छोड़ दिया, क्या आप का विश्वास नहीं डगमगाया, कृपया अपना अनुभव बतायें, इसके बाद भी आप इस संस्था में कैसे टिके हुए हैं ?*
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A: मैं जब भक्ति मार्ग में था तब बहुत किताबें पढ़ता था, अनगिनित किताबें पढ़ी होगी । डायरीयां भर गई और न जाने कितने प्रवचन सुने । ज्ञान के लिए भी जगह जगह भटका क्योंकि ज्ञान की सच्ची प्यास थी । परमात्मा को जानने के लिये सच्ची खोज थी । ब्रह्माकुमारी में तो मैं आना ही नहीं चाहता था क्योंकि यहाँ पर मुझे यकीन ही नहीं था कि इतने सहज और साधारण माहौल में परमात्मा का सत्य ज्ञान मिल सकता है । लेकिन ड्रामा अनुसार जिन्हें ( श्री कृष्ण) को में अपना इष्ट मानता था उनके बारे में जब इस संस्था में बताया गया कि ब्रह्मा बाबा का सतयुगी आदि जन्म ही श्री कृष्ण के रूप में होता है तो गहराई में स्पष्टिकरण और इन दोनों का कनेक्शन जानने के लिए सात दिवसीय कोर्स किया तब थोड़े ही पता था कि यहाँ ही सदा के लिए टिक जाऊँगा । वैसे देखा जाए तो टिकने का प्रमुख कारण है ज्ञान मुरली । विशेषतः मुरली में आये वो परमात्मा के स्नेहयुक्त बोल *“मीठे बच्चे, लाडले बच्चे, प्यारे बच्चे, महावीर बच्चे, दिलतख्तनशीन, गॉडली स्टूडेंट, नूरे रत्न, विजयी रत्न”* इत्यादि इत्यादि। इन शब्दों में समाया *रूहानी प्यार* ही मुझे इस संस्था से जोड़े रखा और अन्यत्र कही जाने से रोके रखा । यह *अव्यक्त ईश्वरीय पालना* ही मुख्य वजह बनी । ये शब्द मुझे संसार के किसी भी किताब में, संस्था में अथवा गुरु के मुखारविंद से सुनने को नहीं मिला । यदि मुरली के इन शब्दों अथवा ईश्वरीय महावाक्य से मेरा रूबरू ( सामना ) नहीं होता तो शायद यहाँ सदा के लिए नहीं टिकता । मुरली ही मुझमें वह बल भरती आ रही है जिससे में आगे बढ़ रहा हूँ । यूँ कहें वह मेरे ब्राह्मण जीवन का प्राणाधार है । आज तक जो इस ईश्वरीय संस्था से जुड़ा हूँ वह परमात्मा के *निःस्वार्थ, निर्मल निष्काम, निरहंकार प्रेम* के कारण, मुरली के सत्य मधुर वाणी के कारण, सच्चा गीता ज्ञान के कारण, पवित्रता की धारणा के कारण, बुद्धि की स्थिरता व सच्चे मन की शान्ति के कारण। यह केवल मेरी ही बात नहीं चाहे वह एक दिन का ही बच्चा क्यों न हो या कैसा भी संस्कार वाला हो *सभी के प्रति समान रूहानी दृष्टि एवं समानता का व्यवहार, आदरयुक्त रूहानी पालना, श्रेष्ठ कर्म व श्रेष्ठ पुरुषार्थ द्वारा उंच स्थिति और सर्वश्रेष्ठ भाग्य बनाने के लिए प्रेरणा देना* यह सभी गुण मैंने साधारण मानव तन में अवतरित परमात्मा में अनुभव किया । मुझे मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य एवं प्राप्ति का मार्ग यहाँ ही मिला जिससे जीवन में स्थिरता एवं परिपक्वता आयी । एक परमात्मा से ही सर्व संबंधों का रस एवं सर्वप्राप्ति होने से और व्यर्थ अथवा झरमुई झगमुई बातों (gossips) में मन जाता ही नहीं, सदैव ज्ञान चिंतन में व्यस्त रहना ही मुझे माया के प्रभाव से सेफ (safe) रखता है । रही बात औरों के स्वभाव संस्कार की इसमें पहले से ही मेरी रूचि नहीं रही इसलिये कौन भाई बहन क्या करते हैं, कितना ज्ञान को फॉलो करते हैं इस तरफ ध्यान न देकर स्वपुरुषार्थ पर ही फोकस किया । विनाश की डेट कितनी बार फेल हुआ या आगे भी होगा, श्री कृष्ण का जन्म कब होगा या सतयुग कब आएगा इन सभी प्रश्नों को भी अब ड्रामा पर छोड़ दिया है क्योंकि जो होगा वह तो अपने समय पर ही होगा और कल्याणकारी ही होगा जिसका पक्का राज़ तो ईश्वर ही जानता है किसी मानव आत्मा में वह सामर्थ्य नहीं । *देखा जाए तो वर्तमान समय ही हमारे सामने है जो सत्य है और अपने हाथ में है । इसलिये वर्तमान अनमोल पल को ज्ञान मंथन में सफल करना और परमात्मा से सर्वसंबंधों के रस की अनुभूति एवं सर्व प्राप्तियों के नशे में रह संतुष्टता का अनुभव करने में ही संगम समय का सार्थक होना समझता हूँ । चाहे बाबा साकार तन में आये या ना आये अव्यक्त मिलन के अनमोल घड़ी का सुख, कंबाइंड स्वरुप का आनंद पूरे संगमयुग में अनुभव करता रहूँगा ।*

by BK Anil Kumar
pathakau71@gmail.com

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Gyan related Question Answers (Hindi)

Question Answers in Hindi on Gyan, Yog and Murli related subjects. Total 4 Q and A in this PART 1 of 7. Visit: Question and Answers for more.

Question 1 :

Om shanti .. *Sidhhhi swarup aatmao ke har bol sidhh hote hai … Siddhi swarup ko kaise emarge kare ya bane .. bataiyega bhai*

Answer:
ओम शांति।
हम सभी जानते है कि आत्मा की तीन मुख्य सूक्ष्म शक्तियां है – मन, बुद्धि और संस्कार। तो सिद्धि स्वरूप केवल वाचा की शक्ति में नही बल्कि संकल्प और हमारे प्रैक्टिकल कर्म भी सिद्धि स्वरूप हो।
अब सिद्धि स्वरूप कैसे बने ? कहते है कि विधि से ही सिद्धि प्राप्त होती है। भक्तिमार्ग में भी यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ द्वारा मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए भी विधि-विधान अपनाया जाता है। ठीक इसी रीति से ज्ञानमार्ग में विधाता परमात्मा बाप ने भी सिद्धि प्राप्त करने वा सिद्धि स्वरूप बनने के लिए बहुत सरल विधि बताया है। बस इस विधि को अपनाने के लिए दृढ़ता और अटेन्शन रूपी चाभी हमेशा लगी हुई हो।

आप को ब्रह्मा बाबा के अंत समय के तीन महावरदानी महावाक्य तो याद होंगे ही ना। वे तीन महावाक्य है- निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी। इन तीन बातो को जीवन मे धारण कर कर सहज ही सिद्धि स्वरूप की स्थिति को प्राप्त कर सकते है।
इसलिए सदा *मन से निराकारी अवस्था मे रहना है अर्थात सर्व के प्रति आत्मीक भाव रहे। बुद्धि से निर्विकारी रहना है अर्थात बुद्धि से सम्पूर्ण पवित्रता को धारण करना है और किस के अवगुणों को चित्त पर नही रखना है। और अंत मे संस्कार में निरहंकारिता को अपना नेचुरल गुण बनाना है।*

मन, बुद्धि और संस्कार में क्रमशः निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारिता का श्रेष्ठ गुण धारण करेंगे तो सहज हमारे संकल्प, बोल और प्रैक्टिकल कर्म सिद्धि स्वरूप बन जाएंगे।
ओम शांति

World drama wheel answers

Question 2 :
आज की मुरली से। भारत ही पतित और भारत ही पावन है। बाकी सब हैं बाईप्लाट। इनका वर्णो के साथ कोई कनेक्शन नहीं है।
इसका क्या अर्थ है। Kindly explain.

Answer of 2 :
ओम शांति।
बाबा ने मुरलियों में बताया हुआ है कि भारत अविनाशी खंड है। इस बेहद ड्रामा का स्क्रिप्ट ही भारत के इर्द-गिर्द बुना हुआ है। जिस प्रकार स्थूल नाटक या फ़िल्म में किसी मुख्य हीरो-हेरोइन को केंद्र में रखते हुए ही अनेको अन्य पात्रों और काल्पनिक घटनाओं का चित्रण और प्रस्तुतिकरण किया जाता है या संक्षेप में यह कह सकते है कि हीरो – हेरोइन के पार्ट को उभारने के लिए अन्य पात्रों को उक्त नाटक या बायस्कोप में बाईप्लाट अर्थात फिक्स किया जाता है। ठीक ऐसे ही अविनाशी खंड भारत की महत्ता को बढ़ाने के लिए ही अन्य खंडों को इस बेहद ड्रामा में बाईप्लाट वा फिक्स किया गया है। इसलिए अंत मे सभी खंड समाप्त हो केवल एक मुख्य भारत खंड की सार्वभौमिकता ही सिद्ध होगी।
ओम शान्त

Question 3 :
कल की मुरली में बाबा ने कहा कि:
” कहते हैं मेरे मन को शान्ति दो वास्तव में शॉन्ति तो आत्मा को चाहिये न कि मन को।”
क्योकि मन आत्मा की ही सूक्ष्म शक्ति है और मन में ही हलचल होती है। शान्त भी उसी को होना चाहिये। कृपया इसकी गुह्यता बतायें।*

Answer of 3 :
मन बुद्धि और संस्कार, ये तीनो चैतन्य शक्ति आत्मा की अंतर्निहित सूक्ष्म शक्तियां है। आत्मा अपने इन तीन सूक्ष्म शक्तियों द्वारा ही जड़ पंच महाभूतों से निर्मित इस शरीर और शरीर की स्थूल कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराती है। इसलिए बाबा ने एकदम सत्य कहा है कि शांति आत्मा को चाहिए ना कि मन को। भक्ति मार्ग में अज्ञानता वश जो मनुष्यात्माये कहती है कि मेरे मन को शांति चाहिए, वास्तव में ये कहना रॉंग हो जाता है क्योंकि मन तो आत्मा की शक्ति है तो शांति भी आत्मा को चाहिए कहना युक्तियुक्त है।

किसी बात पर सहज विश्वास ना होने पर कई बार साधारणतः हम कह देते है कि मेरा दिल इस बात को नही मान रहा या मेरा मन इस बात को कबूल नही कर रहा। अब खुद सोचे कि क्या दिल और मन अमुक बात को नही मान रहा या आत्मा को वो बात कबूल नही हो रही। सत्य तो ये है की भल हम मुख से दिल या मन के बात को कबूल ना करने को कह रहे होते है पर वास्तव में आत्मा को वो बात कबूल नही होती।

मन का कार्य है केवल संकल्पो की रचना करना और दिल का कार्य है शरीर मे खून के सुचारू संचालन करना। इसलिए मन हलचल में आती है ये कहना ज्ञानयुक्त नही है। चूंकि आत्मा का सत्य ज्ञान किस को भी नही है इसलिए अज्ञानतावश आत्मा को अशांत ना कहकर मन को कह दिया। लेकिन अगर आत्मा के मौलिक गुणों में कोई कमी आती है तो अशांत आत्मा होती है, मन नही। पर आत्मा अपनी उस समय की अवस्था को मन अर्थात संकल्प, बोल और कर्म द्वारा दर्शाती है। इसलिए बाह्यरूप से ऐसा प्रतीत होता है कि अमुक मनुष्यात्मा का मन आज अशांत है इसलिए आज उसका व्यवहार अलग है।
ओम शांति .

Question 4 :
* खान-पान की दिक्कत होती है। परन्तु ऐसी बहुत चीज़ें बनती हैं, डबल रोटी से जैम मुरब्बा आदि खा सकते हो।*
आज की मुरली के महावाक्य है कृपा स्पष्ट कीजियेगा की हम बार का msin made चिप्स, ब्रेड, बिस्किट, कोल्ड ड्रिंक ऐसी कोई भी चीज ले सकते है या नई???????*

Answer of 4 :
ओम् शांति बहन।
बहन, इस ज्ञान मार्ग में हमे उतनी प्राप्ति होगी जितना हम धारणाओं पर चलेंगे। और धारणाओं पर चलने में ही हमारी शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की सुरक्षा होती है।

कहावत है – जैसा होगा अन्न, वैसा होगा मन। इसलिए विकारी के हाथ का बना हुआ खाने से हमारी विकारी वृत्ति में परिवर्तन नही हो पाता जिससे हम ज्ञान मार्ग में उड़ती कला में नही जा पाते और दिलशिकस्त हो पुरुषार्थविहीन हो जाते है। इसलिए अपने खान-पान की धारणा पर हम बच्चो को विशेष अटेंशन रखना है।

चिप्स, ब्रेड, बिस्कुट, कोल्ड ड्रिंक आदि का निर्माण जहाँ होता है, अगर आप उस स्थान को देख लेंगे तो स्वतः ही आप को इन चीज़ों से विरक्ति हो जाएगी। आने वाले समय मे बहुत सारी मौते food poisioning से भी होनी है। अगर अभी हमारी आदत बाहर की चीज़ों को खाने के लिए लालायित रहेगी , तो एक जिव्हा के लोभ विकार पर हम विजय कदापि नही पा सकेंगे और दूसरे food poisioning से हमारे स्वास्थ्य को भी गंभीर नुकसान हो सकता है। इसलिए ही मीठे बाबा ने हम बच्चों को बाहर की चीजों को खाने से मना किया हुआ है।
बाबा ने बाहर का ब्रेड, जैम आदि खाने का डाइरेक्शन उन आत्माओ को जो विदेश जा रहे हो, बीमार हो या जिन्हें किन्ही विशेष परिस्थितियों में जैसे शादी-विवाह में कुछेक दिन लौकिक संबंधियों के यहां रहना होता है उनके लिए दिया है। इसलिए केवल बाबा के महावाक्य के शब्द को ना पकड़ निहितार्थ या भाव को भी समझना युक्ति युक्त है।

मां का अपने बच्चों प्रति बनाया भोजन बहुत ऊर्जावान होता है क्योंकि उसमें मां का स्नेह और प्यार समाया होता है। वैसे भी मां को भगवान के समकक्ष माना गया है।
इसलिए यदि माँ बिना प्याज लहसुन के खाना बनाती है तो मुझ आत्मा के विवेक अनुसार उसे अवश्य ग्रहण किया जा सकता है, भल माँ ज्ञान में ना भी चल रही तो तो भी।….. पर खाना खाते हुए उसकी चार्जिंग अवश्य कर ले।

ओम शान्ति

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GOD Shiv Baba's Message

MUST READ. THIS IS GODLY MESSAGE, and an essence of what is taught through Brahma Kumaris Godfatherly University. Please also SHARE this to others. This is all beneficial. Visit the main page – Shiv Baba’s Divine Message with many improvements on this same post.

Before we begin, if you are New to BKWSU, we first advise to visit our About Us page and then after take the 7 days course to understand the essence. Now you may continue to below…

Shiv Baba - God father the Supreme Soul

I am your Spiritual Father

My sweetest children, you have all heard about me, read about me. But now the time has come for me to talk to you directly, to tell you the truth you have been looking for. Before I tell you about myself, let me remind you about yourself. Sweet children, you are not who you think you are – name, religion, profession, relationship… you are not even this body which you see with your physical eyes. You are a pure being of consciousness, a tiny sparkling star of living energy, which uses this body to play many roles. You are a pure, peaceful, loveful, powerful soul.

Our Relationship

Before coming into this world, you all lived in your home… the soul world… a land of complete silence and purity. But you, my sweet children, had to play your role on this earth, for which you left your home and came into this world. When you first came to this world you were complete, perfect and divine. Each one of you had a perfect physical costume (body) to wear and this world was a perfect world… a world of divinity, love and prosperity, known as the Paradise, Heaven, Swarg, Jannat, Baahist, Garden of Allah… When your body would get old, you would just change and wear a new physical costume and continue to play your role. More and more children from home joined you in this world. You all were enjoying this world of happiness, called the Golden Age (Satyuga) and Silver Age (Tretayuga).

Your Story

As you continued to play your part on the world stage for a very long time, your purity and power slowly started to reduce. You forgot your own self and thought you were the body you were wearing and thus lust, anger, ego, attachment and greed came into your interactions. The love and harmony which was there amongst you was lost and you started cheating and fighting with each other. When you experienced pain and sorrow, you started calling out to me. You started looking for me, you had forgotten that I, your Father, stays in the soul world. You started looking for me in your own world. You had a faint memory that I like you, am a being of light,  so you started building temples where you made a symbol of my form to remember me

Also, the world saw some elder children come to your world to guide you like – Ibrahim, Christ, Gautam Buddha, Mahavir, Guru Nanak. They came to teach you the right way of living. They reminded you of me and they came to connect you to me.

God is One in all religions

As time passed, you got divided in the name of religion, nationalities, caste and creed. You, my sweet children, started waging wars in my name. You built temples of your ancestors, the divine souls who had lived in your world in the Golden and Silver Age (or Heaven) –Shri Lakshmi Narayan, Shri Ram Sita and more. You built temples to glorify them and you started looking for me in them. As your cries increased, your search for me became more intense. You even looked for me in nature. Some of you dedicated your life to search for me, but still could not find me. Some of you got so entangled in your world of science and technology that you even believed that I do not exist. This was the time of Copper Age (Dwaparyuga) and Iron Age (Kaliyuga).

You thought I decide your destiny whenever you had a problem, and so you blamed me for it and prayed to me again to correct it. My innocent child, how can I, your most beloved father give you any form of sorrow? Sweet children, I am your Father, can I ever give you disease, poverty, injustice, conflict and natural calamities? Everything in your world works according to the law of ‘collective consciousness‘ and the Law of Karma, that you only get a return for what thoughts you create and actions you perform. You are the creators of your world. You are children of God. I can give you the knowledge and power to create a wonderful destiny. But for that, you need to connect to me and received and imbibe the knowledge I give.

Sweet Children, your search for me now ends. I have come to remind you of who you are and who I am – and what is the relationship which we share.

My lovely children, like you, I am also a being of spiritual light. I am the Ocean of Purity, the Ocean of Love and the Ocean of Knowledge. You have called out to me by many names. I am your Father, Teacher and Guide. You children take a body and come into the cycle of birth and death, I do not take a body. I live in the soul world, a land of silence and purity which is also the home from where you all came to this world. I will give you knowledge, love and power to purify you.

Sweet children, become aware of your original self and connect to me. Remember me and reclaim your inheritance of Peace, Purity, Bliss, Powers and Love. By constantly fixing your mind towards me, you will be purified from the vices and your past life sins. Purified thus, you will help me in creating a world for you the sweetest children where Peace is the religion, Love is the language, unity is the relationship, Truth is in action and Happiness is the way of living – a world which you still remember and call it ‘heaven’.

♔ A New World Morning for you… Your dream is very soon turning into a reality. ♔

( Above is a picture of Golden age (Satyug/Heaven). This is the world that God has come to create. By purification of souls, the nature (and its five elements) will be purified and thus such a perfect world will be established. This is called ‘Godly Kingdom’, where Shri Lakshmi and Shri Narayan rules. World is one big family. There is purity, peace, love and joy. Nature is a servant. How will this world be established? Learn more here -> Golden age world and here -> World Transformation )

Now watch this video – ‘‘World Drama Cycle” (Hindi)

( Visit our Videos Gallery to watch more such videos.)

Now that you have received God’s divine message, come and learn about What is Murli which we the students study every day.

✿ How God Teaches: – God Father Shiva teaches us children (students) through the corporeal medium of Prajapita Brahma (in whom he enters and speaks). Murlis are the unadulterated original versions of SHIV BABA our Supreme father, teacher and satguru. To know more, please refer to page: What is Murli?

Gyan murli is a daily food for our thoughts. Murli, in general, is composed on 4 subjects. They are:
1. Gyan (knowledge)
2. Yog (shrimat to remember one Shiv baba
3. Dharna (to imbibe divine virtues in practical life
4. Sewa (service as per God’s shrimat

The essence of all four subjects is ‘Karma Yog’ – meaning; to do all day to day tasks and activities as per shrimat in remembrance of one father – Shiv baba. This raises our ‘consciousness’ level. We stay in constant awareness thus, that ”I AM A SOUL”. This soul consciousness reflects in our tasks, thoughts and relationships. It is not chanting, repeating or learning by rote, but being ‘aware’ of our spiritual identity while doing all the required tasks. 

Murli is the nectar which the students of this spiritual family receive. Its God’s versions for his children. Murli covers many topics which when we implement in our day to day life bring a magical transformation in self as far as dealing with life’s challenges. In short, Murli is the Karma Darshan of self. By reading the excerpts of Murli we analyse the quality of our Karma.

There are two types of murli:

(1) Sakar Murlis – Sakar Murlis are the unadulterated original versions of ShivBaba, our Supreme Teacher as initially and actually spoken by Him through His medium Brahma Baba since 1936 to 1969 (referred to as ‘SAKAAR’ Murlis). Listen Original Sakar Murlis

(2) Avyakt Murli – Avyakt murlis are divine versions spoken by BapDada i.e. both ShivBaba and Brahma Baba through Their medium Dadi Gulzaar since 1969 up to date after Brahma Baba attained his Stage of Perfection. Shivbaba and Brahmababa are both together affectionately called BAPDADA. BAP means father and DADA mean grand-father and also elder brother. Listen Avyakt Murli records.

These precious teachings have been preserved through the years and circulated to all the Brahma Kumaris branches throughout the world and read out daily during ‘Murli – Class’ to the Brahma Kumari students by the teacher – in charge. There are various websites given below which provide Murlis classes as well as other information.
Om Shaanti.

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अंतिम समय की सेवा, स्थिति और नज़ारे (End time scenes)

अंतिम समय की सेवा, स्थिति और नज़ारे (End time service, stage of purusharth and scenes in world transformation)

अंतिम समय : सेवा, नज़ारे, और पुरुषार्थ की स्थिति

कम्बाइन्ड स्वरूप व अन्तःवाहक शरीर द्वारा डबल सेवा :

*मैं, आत्मा अपने स्वमान की स्मृति के साथ परमात्मा से कम्बाइन्ड होकर इस कम्बाइन्ड स्वरूप द्वारा आखिरी अंतिम समय की बेहद सेवा कर सकती हूँ* । यह इस कम्बाइन्ड स्वमान वाले चित्र में दर्शाया गया है ।

अंतिम समय जब *विश्वयुद्ध, गृहयुद्ध, भयंकर रोग, प्राकृतिक आपदाओं* के कारण संसार में विनाशकारी तांडव विकराल रूप धारण कर चुका होगा तब स्थूल सेवा की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी उस समय हमारे संपूर्ण स्वरुप याने *अव्यक्त आकारी डबल लाइट फ़रिश्ता स्वरुप* की स्थिति द्वारा *शिव-शक्ति कम्बाइन्ड स्वरुप* में स्थित हो *डबल सेवा* करनी पड़ेगी । 

*डबल सेवा* याने *१) संकल्पों व चलन चेहरे दृष्टी द्वारा सेवा २) अन्तःवाहक स्वरुप द्वारा सेवा* जिसमें सूक्ष्म शरीर और निराकारी स्वरुप इमर्ज रूप में डबल लाइट स्वरुप में होते हैं । *परमपिता शिव परमात्मा* की *प्रत्यक्षता* भी इसके द्वारा होगी । सतयुग में आत्मा (निराकारी स्वरुप) और सूक्ष्म शरीर (फ़रिश्ता स्वरुप) इमर्ज रूप में होते हैं अर्थात शरीर होते हुए भी नाम मात्र रहता है याने देह भान नहीं रहता, बिलकुल लाइट, कोई विकर्म नहीं होता । 

अब *अंतिम समय परमधाम जाने से पहले* निराकारी स्वरुप व आकारी फ़रिश्ता स्वरुप गुणों के इमर्ज (emerge) रूप में और देहभान (body consciousness) मर्ज (merge) रूप में रहे, *ruling controlling power* इतनी रहे कि जब चाहो इस देह से *डिटैच* (detach)  हो निराकारी, आकारी रूप से डबल सेवा कर सको । यह सेवा वही आत्मा कर सकेगी जिसने अपनी स्थिति को लम्बे काल से ज्ञान और योग के अभ्यास द्वारा *श्रेष्ठ और ऊँचा* बनाया है, जिसका संकल्प शक्ति पावरफुल है और जिसमें बेहद की दृष्टी तथा वैराग्य है । चूँकि हम मुक्तिधाम और जीवनमुक्ति धाम का मार्ग दिखाने के निमित्त आत्माएं हैं हमारी दृष्टि से *सुख शान्ति की प्यासी, दुःख पीड़ा से ग्रसित, भयभीत आत्माओं* को दोनों मार्ग दिखाई देगा अर्थात एक आँख में *मुक्तिधाम* और दूसरे आँख में *जीवनमुक्ति धाम* का रास्ता दिखाई देगा । विनाश समय *अनुभव की अथॉरिटी* होगी तो *मुक्ति जीवनमुक्ति* दे सकते हैं । सतयुग-त्रेता में धर्मसत्ता (religious authority) और राज्य सत्ता ( ruling authority) दोनों रहता है जो आत्मा के यथार्थ ज्ञान पर आधारित होता है, द्वापर में राज्य सत्ता (ruling authority) देह अभिमान पर आधारित होता है ,कलियुग में ज्ञान सत्ता (science authority) होने पर भी सभी राज्य सत्ता और धर्मसत्ता प्रभावहीन हो जाते हैं और संगमयुग पर प्राप्ति का आधार है योगसिद्धि अथवा अनुभव की अथॉरिटी ( authority of experience ) ।

*वर्तमान अंत समय* में बाबा को *निराकारी, आकारी स्वरुप में स्थित* ज्यादा परसेंटेज वाले बच्चों की मांग है जो सूक्ष्मवतन में निराकारी आकारी स्वरुप द्वारा सेवा दे सकते हैं । ऐसी आत्माएं किसी के भी सूक्ष्म शरीर, अवचेतन मन को सक्रिय तथा सूक्ष्म /सुप्त शक्तियों को जागृत कर सकते हैं 

*उर्ध्वरेता योगी, शिवयोगी, राजऋषि, अव्यभिचारी याद, परकाया प्रवेश* ये सभी अन्तःवाहक शरीर से सम्बंधित हैं जिसका *राजयोग के अभ्यास* से कनेक्शन है ।    

इसलिए आज *डबल सेवा की मांग* है । इससे आप किसी के मन को वा संस्कारों को change कर सकते हैं । यही *संपन्न, संपूर्ण* बनाने के लिए सेवा का *रीफाइन स्वरुप* (refine form) है जो *उंच स्थिति* वाले ही कर सकते हैं । इसके लिए आप को मन की *स्थिरता* और बुद्धि की *एकाग्रता* बढ़ानी पड़ेगी जो *अमृतवेला पावरफुल* बनाने से होगा क्योंकि यही आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए वरदानी समय है, दूसरी बात जितना हो सके व्यर्थ संकल्प अथवा विकल्प से मुक्त रहने का अभ्यास करें और *समर्थ संकल्पों* में स्थित होने का प्रयास करें तो व्यर्थ से बच जायेंगे जिससे मानसिक उर्जा की बचत होगी, तीसरी बात, दिन में कई बार बीच बीच में शरीर से *डिटैच* हो *डबल लाइट फ़रिश्ता स्वरुप* का अनुभव करते रहें । चौथी बात, *दृष्टि शुद्ध आत्मिक* रहे इस पर भी सतत अटेंशन रहे क्योंकि देहभान ही संकल्प द्वारा सेवा और उड़ती कला में जाने में सबसे बड़ा बाधक है । आखिरी बात, *मौन अथवा साइलेंस* का अधिक से अधिक पालन करें क्योंकि इससे हम व्यर्थ बोल से मुक्त रहेंगे, संकल्प शक्ति की बचत होगी, अंतर्मुखी होने में मदद मिलेगी जिससे एकरस अवस्था में स्थित रहना आसान होगा । 

( *नोट : मनसा सेवा और सकाश में कौन सी बातें शामिल होती है ,वाइब्रेशन और सकाश में अंतर, लाइट और माइट / योग और  याद में  अंतर, योग की विभिन्न अवस्थाएं इन सभी बातों का विस्तार नीचे pdf में दिया )

*अंतिम नज़ारे व स्थिति :* 

हलचल वाली *दर्दनाक सीन* का दृश्य अपने मानस पटल पर लायें । पुरानी कलियुगी दुनिया की  *सफाई* शुरू हो चुकी है । धरती कांप रही है, भारत के कुछ उत्तरी हिस्सों को छोड़ सभी खंड समुद्र की  विराट सुनामी लहरों में जल समाधि ले रहे हैं, सूर्य  की भयानक तपत , ज्वालामुखी के रूद्र रूप एवं परमाणु बम की अग्नि में सभी कुछ स्वाहा (ख़ाक) हो रहा है, वायु की विकराल गति से समस्त प्राकृतिक स्त्रोत एवं मानव कृत कृत्रिम वैज्ञानिक आधार नष्ट हो रहे हैं जिससे बाह्य एवं भीतर अंधाकार छा गया है ।आकाश तत्व विनाशकारी गूंजो एवं विषारी प्रदूषणों का मूक द्रष्टा बन गया है ।

विश्व के लगभग सभी *७०० करोड़ आत्मायें, प्राणी जीव जंतु* अपना अपना चोला छोड़ परमधाम (मुक्ति धाम) की ओर प्रस्थान कर रही हैं । सभी आत्माएं देह से सम्बंधित *नाम, मान, शान, पद, व्यक्ति, वस्तु,  वैभव, स्थूल संपत्ति,जमीन, जायदाद इत्यादि* सब कुछ यहीं पर छोड़ … जहाँ का था उसी को सुपुर्द कर जन्मजन्मान्तर के *कर्मों के हिसाब किताब चुक्तू*  कर अपने वास्तविक  *आत्म ज्योति स्वरुप* में अनादि *रूहानी शिवपिता* के साथ उड़ने की तैयारी कर रही हैं।

सभी ब्राह्मण आत्माएं अपने  *शांति स्वधर्म* में टिके हुए हैं । *नवयुग* और *नयी राजधानी* का साक्षात्कार कर रहे हैं । वो *हाय हाय* और हमारे भीतर  *वाह वाह* के गीत निकल रहे हैं ! *वाह बाबा ! वाह कल्याणकारी ड्रामा ! वाह मेरा भाग्य !* सभी का पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य हो चुका है, एक बाबा से सर्व रस, सर्व सम्बन्ध, बस यही एक समान संकल्प की धुन लगी है  *“अब बाप अथवा साजन के साथ अपने घर ( परमधाम ) लौटना है फिर सतोप्रधान नयी सतयुगी दैवी दुनिया के देवताई चोला में आना है ”* ।

हम *पूर्वज, महादानी, वरदानी विश्वकल्याणकारी, आधारमूर्त,उद्धारमूर्त ,रहमदिल* की स्टेज पर स्थित हो सभी का उद्धार कर रहे हैं, *लाइट हाउस* बन सभी को मुक्ति- जीवन मुक्ति का रास्ता दिखा रहे हैं,  *मास्टर सद्गुरु* बन सद्गति दे रहे हैं एवं  *मास्टर भगवान* बन भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं ।

सभी आत्माएं भी संतुष्ट होकर महिमा के गीत गाते हुए गंतव्य स्थान की ओर बढ़ रहे हैं :  *प्रभु तेरी लीला अपरम्पार, तेरी गति मति तू ही जाने* । ओम शांति

ईश्वरीय सेवा में…

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Source: World Transformation Secrets

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English – End Time Service, Stage and Scenes

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