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Special Poems in Hindi

Murli Poems

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बाबा से प्रेरित यह विशेष कविताये है जो आपमें पुरुषार्थ की उमंग भर देंगी (Poems written on inspirations by Shiv baba. These special poems brings the pure joy of wisdom of Gyan Murli and makes our Purusharth seem easy.) – Weekly updated. Poems by Brahma Kumar Mukesh bhai (Rajasthan, India). If you have a query or for old poems, contact BK Mukesh: bkmukesh1973@gmail.com

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* पवित्रता का श्रृंगार जीवन में लाए बहार *

तन मन्दिर के ऊंच सिंहासन पर मैं विराजमान ,

मैं हूँ चमकती हुई आत्मा शुद्ध मणी के समान

मेरे गुण स्वधर्म की याद ज्ञान सागर ने दिलाई ,

उसी गुणों के सागर से मिलने उड़कर मैं आई

मेरे मीठे फूल बच्चे कहकर उसने मुझे बुलाया ,

शुभ शिक्षाओं के झूले में प्यार से मुझे झुलाया

चुनरी ओढ़ी पवित्रता की श्रेष्ठ भाग्य मैंने पाया ,

सच्ची सुहागन आत्मा परमात्मा ने मुझे बनाया

सद्गुणों का श्रृंगार कर उसने मुझको महकाया ,

मेरा ये जीवन पवित्रता के कमल जैसा बनाया

पवित्रता से बनी ईश्वर के दिलतख्त का श्रृंगार ,

खुद की पवित्रता पर ही आया है मुझको प्यार

पवित्रता की विशेषता को सच्चाई से अपनाया ,

पवित्र स्वरूप और स्वधर्म को यादों में सजाया

शुद्ध वृत्ति से गुलाब समान वायुमण्डल बनाया ,

अपना ही जीवन मैंने गुणों का गुलदान बनाया

पवित्रता के बल से रूहानी सुन्दरता को पाया ,

इसी गुण ने मुझे सफलता का शिखर दिलाया

*ॐ शांति*

* खुदा से प्यार *

किसी के प्यार में क्यूं इतने आंसू बहाता है ,

एक प्यारे खुदा का क्यों नहीं बन जाता है

जिस्मानी प्यार जिस्म के साथ मिट जाएगा ,

एक जिस्म मिटा तो दूसरा जिस्म लुभाएगा

जिस्म बदलते ही तेरा प्यार भी बदल जाएगा ,

ऐसे में तूँ अपनी मंजिल से भटकता जाएगा

छोड़ अब जिस्मानी प्यार बात मेरी मान ले ,

भूलकर जिस्म को तूँ खुद को रूह जान ले

छोड़ दे अपनी हर ख्वाहिशें जो विनाशी है ,

एक खुदा का रूहानी प्यार ही अविनाशी है

जिस्म मिटा तो ये कसमे वादे भी मिट जाएंगे ,

कर ले खुदा से प्यार जो जन्नत तुझे दिलाएंगे

*ॐ शांति*

* शिव परमात्मा का कर्तव्य *

घनघोर रात की उतरन पर चुपके से आता हूँ

अज्ञान नींद में सोई हर आत्मा को जगाता हूँ

आता जो मेरे संपर्क में भूल जाता वो देहभान

पल भर में हो जाता पांच विकारों से अनजान

जमा लेते हैं संसार मे जब विकार अपना डेरा

मुक्ति दिलाता हूँ विकारों से काम यही है मेरा

सुखी जीवन जीने की सही विधि सिखाता हूँ

मैं गीता ज्ञान सुनाकर मानव को देव बनाता हूँ

याद दिलाता हूँ अपने बच्चों की सत्य पहचान

याद दिलाऊं बच्चों को भूला हुआ आत्मभान

मिलता हूँ अपने बच्चों से संगमयुग मे आकर

घर ले जाता हूँ बच्चों को पूरा पावन बनाकर

भेजता हूँ बच्चों को सतयुगी दैवी स्व राज्य में

पद पाते उतना जितना लिखते अपने भाग्य में

मेरा परिचय जानकर बच्चों करो यही तैयारी

परमधाम चलने के लिए बन जाओ निर्विकारी

ज्ञान योग के बल से सम्पूर्ण पावन बन जाओ

दैवी दुनिया सतयुग में जाकर पद ऊंचा पाओ

*ऊँ शान्ति*

* चक्र लगाओ *

84 जन्मों में पक्का किया चक्र लगाने का संस्कार

संगमयुग में भी बच्चों चक्र लगाते रहना बारम्बार

कभी जाना वतन में कभी अपनाना दुनिया साकार

देवलोक की सैर पर जाना करके तुम सोलह श्रंगार

बनकर मन्दिर की मूरत नैया कर देना सबकी पार

श्रेष्ठ ब्राह्मण बनकर तुम करते जाना खुद का सुधार

उड़कर जाना परमधाम में बनकर बिंदी निराकार

पावन बनने की वेला कल्प में आती एक ही बार

स्व परिवर्तन करने में तुम मत करना सोच विचार

माया लेकर ही आएगी क्षणिक खुशियों के उपहार

बाप की याद में रहना मत करना उनको स्वीकार

अपना स्वदर्शन चक्र चलाता रहता है जो बारम्बार

नरक से स्वर्ग में बदल जाता है उसके लिए संसार

* ॐ शांति *

* प्रीत बुद्धि की निशानी *

प्रीत बुद्धि बच्चे सदा अव्यक्त अलौकिक रहते ,

कमल पुष्प जैसे न्यारे और बाप के प्यारे रहते

समय विनाश का समझकर जोड़े बाप से प्रीत ,

पवित्र बनकर निभाते वे संगमयुग की यह रीत

बुद्धि की लगन रखते वे एक बाप से जोड़कर ,

वस्तु व्यक्ति वैभव से हर नाता रखते तोड़कर

उनकी दृष्टि से बापदादा ओझल कभी ना होते ,

प्रीत बुद्धि बच्चे बाप से विमुख कभी ना होते

प्रीत बुद्धि के बोल सदा वे मुख से कहते रहेंगे ,

कुछ भी सहना पड़े लेकिन बाप के संग रहेंगे

उनका रूप रूहानी अन्तर्मुखता को झलकाता ,

प्रभु प्यार से भरपूर उनका मुखड़ा नजर आता

स्मृति रखना मेरा तन एक पल में मिटने वाला ,

मेरा अन्तिम समय मुझे पूछकर ना आने वाला

यही स्मृति तुम्हें बाप की याद दिलाती जाएगी ,

किसी और की याद तुम्हें कभी नहीं सताएगी

प्रीत बुद्धि बनकर जो प्रीत की रीत निभाएंगे ,

सदा काल के लिए सारे संसार के सुख पाएंगे

ऐसे प्रीत बुद्धि बच्चों का बाप करते गुणगान ,

विश्व की बादशाही देकर करते उनका सम्मान

*ॐ शांति*

* अमृत वेला का अनुभव *

शांति की सौगात देने को बाबा ने मुझे बुलाया

छोड़कर तन पिंजरा मैं उड़कर वतन में आया

बरस रही थी शांति की निरन्तर शीतल फुहार

शांति के अनुभव का मेरा स्वप्न हुआ साकार

आया स्थूल संसार में होकर शांति से सराबोर

समाप्त हुआ अशांति का मेरे जीवन से शोर

* ॐ शांति *

* स्वदेश वापसी की यात्रा *

रहता हूँ इस धरा पर जैसे किसी परदेश में ,

ना मालूम कब जाऊंगा में अपने स्वदेश में

पांच तत्व के तन का पिंजरा तोड़ ना पाऊं ,

समझ नहीं आता कैसे मूल वतन मैं जाऊं

बाकी बचा है किस कर्म बंधन का हिसाब ,

क्यों नहीं आ रहा अन्तर्मन से कोई जवाब

एक ही युक्ति शिव परमात्मा ने मुझे बताई ,

खुद को आत्मा समझो देखो आत्मा भाई

तन अपना विनाशी इक दिन मिट जाएगा ,

पंच तत्वों से निर्मित इनमें ही मिल जाएगा

अपना अनादि स्वरूप स्मृति में तुम लाना ,

औरों को भी तुम सदा आत्मा नजर आना

तन से न्यारेपन का अभ्यास करोगे जितना ,

तन पिंजरे से निकलना सहज होगा उतना

कर्म का हर बंधन भी समाप्त होता जाएगा ,

परमपिता शिव खुद स्वदेश हमें ले जाएगा

*ॐ शांति*

* शब्दों का चुनाव *

अपनी वाणी में शब्दों का ठीक से करो चुनाव

व्यर्थ के वाद विवाद से कर लो अपना बचाव

गलत शब्द कभी कभी ऐसा बाण बन जाता

ना जाने कितने दिलों को ये आहत कर जाता

मामूली सी बात पर हो जाते अपने भी पराए

घर भी उजड़ जाते जो थे प्यार से बसे बसाए

टूट जाते रिश्ते नाते और खत्म हो जाता प्यार

उदासी आती जीवन में नहीं सुहाता ये संसार

रोग नहीं ये महारोग इसका कर लो समाधान

करो खुद का सुधार करके आत्म अनुसन्धान

भूले से भी ना हो किसी का शब्दों से अपमान

वाणी मीठी रखकर सबको देते जाओ सम्मान

शब्द वही अनमोल जो लाए जीवन में मुस्कान

जो नफरत का मिटा दे दुनिया से नाम निशान

प्यार भरे मीठे बोल ही जीवन को सुखी बनाते

वसुधैव कुटुम्बकम् का साकार रूप दिखलाते

*ॐ शांति*

* सेवाधारी फरिश्ता महान *

भरकर मैंने ऊंची उड़ान

बन गया हूँ फरिश्ता महान

देह का सम्बन्ध नहीं लुभाए

जब बाबा मुझे वतन में बुलाए

देह का आकर्षण भूलाकर

आत्म पंछी रूप अपनाकर

पवित्रता के मैं पंख लगाकर

उड़ता जाऊँ मैं विश्व सेवा पर

किसी आकर्षण में रुकता नहीं

सेवा करने से मैं थकता नहीं

मैं फ़रिश्ता हूँ सदा सुखदाता

बाबा से सब गुण शक्ति पाता

निश्वार्थ और समर्पित भाव से

हर आत्मा पर मैं सुख बरसाता

आ जाओ आप भी मेरे संग में

रंग लो खुद को प्रभु के रंग में

तुम भी फरिश्ता बनते जाओ

रूहानी प्यार बाबा से पाओ

भरकर झोली प्यार से अपनी

सब पर अब खुशियाँ बरसाओ

*ॐ शांति*

* पहला नम्बर *

एकान्तवासी होकर आत्मचिन्तन करते जाओ

ज्ञान के हर बिन्दु का मन मन्थन करते जाओ

अन्तर्मुखी होकर करो अपने भीतर का दर्शन

बैठो बाबा की याद में चलाओ चक्र स्वदर्शन

इसी अभ्यास से मन मन्दिर की होगी सफाई

सम्पूर्ण बनकर घर चलने की घड़ी अब आई

मिटने वाले इस जग से अपनी बुद्धि हटा दो

व्यर्थ संकल्पों का उत्पादन पूरा ही घटा दो

खा लो यह सच्ची कसम लेकर हाथ में जल

श्रीमत के बल पर खुद को पूरा ही देंगे बदल

अहंकार को छोड़कर स्वाभाव बनाएंगे सरल

मोल्ड होंगे हम इतना जैसे जल होता है तरल

दधीचि मिसल देंगे हम यज्ञ में अपनी आहुति

विश्व नाट्यमंच पर श्रेष्ठ होगी हमारी प्रस्तुति

हमारी श्रेष्ठ चलन देखकर बाबा भी मुस्काएंगे

तीव्र पुरुषार्थ कर पहला नम्बर हम ही पाएंगे

*ॐ शांति *

* साथी हमारा स्वयं भगवान *

भण्डार हमारे भर दिए उसने एक नजर डालकर

पावन हमें बना दिया सर्व विकारों से निकालकर

बोझ उठाकर उसने बुद्धि से हल्का मुझे बनाया

पवित्रता के पंख लगाकर उसने उड़ना सिखाया

स्वप्न में नहीं सोचा था मिलेगा हमें सर्वशक्तिमान

हम फक्र से कहते हैं साथी हमारा स्वयं भगवान

मिटने वाली दुनिया का आकर्षण किया समाप्त

नई दुनिया के स्वप्न मेरी बुद्धि में होने लगे व्याप्त

लगन एक ही जागी मन में तपस्या करते जाएंगे

खुद के संग संग सारी दुनिया को पावन बनाएंगे

*ॐ शांति*

* नई दुनिया बनाने की विधि *

नम्र चित्त होकर चलने से मिलेगा सभी का सहयोग

देह अभिमान से अब कर लो अपना पूरा ही वियोग

बेहद बाप के बच्चे हो बन जाओ बेहद के सेवाधारी

अपना हरेक संकल्प करो होकर बेहद कल्याणकारी

करो बेहद संस्कारों का त्याग करो बेहद की तपस्या

मिटा डालो इस दुनिया से पांच विकारों की समस्या

खुद को बनाओ प्रति पल का अखण्ड तपस्वी मूरत

अपनी चलन चेहरे से दिखाओ ब्रह्मा बाप की सूरत

व्यर्थ संकल्पों की सर्व दीवारें दृढ़ निश्चय से गिराओ

समर्थ संकल्पों की दिव्य रौशनी चारों और फैलाओ

आलस अलबेलेपन का संस्कार जीवन से मिटाओ

त्यागकर निद्रा सारे विश्व में पवित्र वाइब्रेशन फैलाओ

पहन लो कवच नम्रता का संस्कारों को ना टकराओ

श्रीमत को आधार बनाकर वैचारिक मतभेद मिटाओ

कोई व्यर्थ ना देखो कभी ना देखो किसी की गलती

स्वयं के संस्कारों को बदलने से सृष्टि सारी बदलती

क्रोधाग्नि को बुझाओ डालकर स्नेह का ठण्डा पानी

रूहानी स्नेह के संस्कारों द्वारा नई दुनिया हमें बनानी

* ॐ शांति *

* बापदादा की अन्तिम शिक्षा *

आने वाला है मेरे बच्चों समय बड़ा ही भयानक

बदल जाएगा सब कुछ इस दुनिया में अचानक

दिखाई देती हैं जो बड़े बड़े भवनों की ये कतारें

मिल जायेंगे मिट्टी के ढ़ेर में सुन्दर सभी नजारे

चारों तरफ सिर्फ लाशों का ढ़ेर ही दिखाई देगा

तड़प तड़पकर मरने वालों का शोर सुनाई देगा

भुखमरी होगी इतनी एक रोटी भी ना पाओगे

भूख प्यास के मारे अपना दम तोड़ते जाओगे

जीवन नहीं रहेगा तब किसी के लिए आसान

ऐसे में अगर तुमको याद आ भी गया भगवान

बोलो क्या तुम कर्मों का हिसाब चुका पाओगे

क्या इस हालत में खुद को पावन बना पाओगे

सोचो और विचारों बच्चों ये बात बड़ी गम्भीर

देखकर तुम्हारा अलबेलापन हो गया मैं अधीर

करते नहीं काम एक भी जो तुम्हें समझाता हूँ

ऐसा लगता जैसे भैंस के आगे बीन बजाता हूँ

ओ मेरे दुलारों कब तक मैं तुमको समझाऊंगा

सुधर भी जाओ वरना मैं धर्मराज बन जाऊंगा

नहीं सुनूंगा बात तुम्हारी मैं डंडे ही बरसाऊंगा

कड़ी सजायें खिलाकर तुमको घर ले जाऊंगा

मेरी ये अन्तिम शिक्षा तुम जीवन में अपनाओ

अपने कदमों को पावनता के पथ पर बढ़ाओ

* ॐ शांति *

* ब्रह्मा बाबा के स्मृति दिवस पर कविता *

संस्कार बड़े ही सुन्दर लेकर वो दुनिया में आया , उसकी रूहानी छवि देखकर मन सबका हर्षाया

बढ़ती उम्र के संग उसकी आभा भी बढ़ती गई , प्रति दिन उसकी रूहानी सुन्दरता निखरती गई

श्रेष्ठ कर्म करते रहकर उसने जीवन किया महान , हर किसी को लगने लगा वो चलन से देव समान

रूहानी सुन्दरता का ये राज उससे पूछा ना गया , उसकी छवि को निहारे बिना हमसे रहा ना गया

जान लिया हमने ये है शुद्ध संकल्पों का कमाल , इसीलिए उसने बनाया हर आत्मा को खुशहाल

योगाग्नि से वो बनकर निकला कुन्दन के समान , इसीलिये तो कहलाया अपना ब्रह्मा बाबा महान

बाप होकर भी जिसने किया बच्चों का सम्मान , नहीं था जिसके भीतर अहंकार का नाम निशान

अलौकिक जन्म देकर माँ का पार्ट भी निभाया , छत्र छाया बनकर उसने सबको दिल में बसाया

बच्चों की हर कमी कमजोरी को उसने समाया , श्रीमत देकर उसने हर मुश्किल को पार कराया

एकान्तप्रिय होकर भी बाबा थे सदा मिलनसार , श्रेष्ठ व्यवहार से किया अपकारी पर भी उपकार

किया जिसने निराकारीपन का पक्का अभ्यास , यादों में बसाया था जिसने शिव को श्वासों श्वास

ईश्वरीय मत को जिसने हृदय से किया स्वीकार , निश्चय बुद्धि बनकर पाया विजय माला का हार

रहता था मुख पे सदा बेफिक्र बादशाही का नूर , सम्पूर्णता की मंजिल पाई करके पुरुषार्थ भरपूर

विश्व परिवर्तन का कर्तव्य वो आज भी निभाता , हम सब बच्चों से मिलने अब भी वतन से आता

पुरुषार्थ की गति बढ़ाकर कर्मातीत स्थिति पायें , इस वर्ष अपने आपको ब्रह्मा बाप समान बनायें

*ॐ शांति*

* बदलो अपनी जीवन व्ययस्था *

संगम युग का अनमोल समय व्यर्थ नहीं गंवाना

नाजुकपना त्यागकर खुद को सेवाधारी बनाना

बाप की मदद कर बनना ऊंच पद के अधिकारी

सहनशक्ति बढ़ाकर त्यागो बहानों की ये बीमारी

दुख भरे संसार में कुछ भी नहीं अपने अनुरूप

जब चाहोगे ठंडी छाँव तो मिलेगी गर्मागर्म धुप

गर्मी जला दे सर्दी ठिठुरा दे बरसती रहे बरसात

करो ईश्वरीय सेवा लेकर हाथ में बाबा का हाथ

माया की जंजीरों से देहधारी नहीं छुड़ा सकेगा

केवल शिवबाबा ही घर की तरफ उड़ा सकेगा

समझो मेरे बच्चों कैसे बिगड़ी बनी हुई तकदीर

देह अभिमान ने आकर बनाया पूरा ही फ़कीर

स्वर्ग का सुख पाने के लिए ये इन्तजाम कर लो

अविनाशी ज्ञान रत्नों से अपनी झोलियाँ भर लो

बाप की याद में रहकर बनाओ एकरस अवस्था

श्रीमत अपनाकर बदलो अपनी जीवन व्ययस्था

*ॐ शांति *

* प्यार की दुनिया बनाओ *

बनकर बिंदू रूप बिखेरते रहो रूहानी मुस्कान

अपनी दिव्यता से देते जाओ खुद की पहचान

यदि देख ले कोई हमें तो भूल जाए अपना तन

स्पष्ट याद आ जाए उसे अपना निराकारी वतन

मिट जाए विकारों की अग्नि शांति का हो राज

बजे सदा चैन की बंसी और बजे सुख का साज

कितना हो कोई भी नाराज देना है सबको प्यार

नफरत को त्यागकर बनो प्यार देने में होशियार

सीख लिया है आसानी से हमने चाँद पर जाना

आओ सीख लें दुश्मन को अपना दोस्त बनाना

करते रहें प्यार सभी को चाहे जाए अपनी जान

प्यार लुटाएं बनकर प्यार के सागर की सन्तान

गुजरे चाहे किसी भी हालात में अपनी जिन्दगी

प्यार बाँटना ही हमारे लिए हो खुदा की बन्दगी

प्रभु प्यार लुटाएंगे हम अवगुण सबके भुलाकर

चैन की सांस लेंगे हम प्यार की दुनिया बनाकर

*ॐ शांति*

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